राजसमंद |
राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश गोपालकृष्ण व्यास और रामचंद्रसिंह झाला की खंडपीठ ने बुधवार को विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई की। खंडपीठ ने शिक्षा सचिव को निर्देश दिए कि जब तक निजी स्कूलों की फीस निर्धारण के लिए बनाए गए एक्ट पर सुनवाई चल रही है, तब तक इस संबंध में एक्ट को क्रियान्वयन नहीं कर प्रदेश के किसी भी निजी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई नहीं करें। राजसमंद के लक्ष्मीपत सिंहानिया स्कूल, मयूर पब्लिक स्कूल, गांधी सेवा सदन स्कूल, ऑरेंज काउंटी स्कूल, श्रीजी पब्लिक स्कूल, क्रिएटिव ब्रेन एकेडमी, सुभाष पब्लिक स्कूल, प्रगति स्कूल एमडी सहित 8 निजी स्कूलों और जोधपुर के सेंटपॉल स्कूल की ओर से पेश याचिका पर यह निर्णय हुआ। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनीष सिसोदिया ने राज्य सरकार की ओर से 2013 में फीस निर्धारण के लिए बनाए एक्ट को खत्म कर वर्ष 2016 में लागू किए गए नए एक्ट के खिलाफ याचिका दायर की। नए एक्ट के अनुसार निजी स्कूलों में फीस निर्धारण के लिए टीचर और अभिभावकों की कमेटी बनाई जानी थी। कमेटी ही फीस का निर्धारण कर राज्य सरकार से अप्रूवल लेगी। सिसोदिया ने तर्क दिया कि फीस निर्धारण से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। सरकार इन स्कूलों को किसी तरह का अनुदान ही नहीं देती है। केवल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता ली जाती है। पीएनए पाय फाउंडेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है कि गैर सरकारी स्कूलों और गैर सरकारी कॉलेजों में सरकार तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जब तक वे मुनाफाखोरी नहीं कर रहे हो।बहुत ज्यादा फीस लेने या मुनाफाखोरी की स्थिति में हस्तक्षेप किया जा सकता है, अन्यथा बिल्कुल नहीं। फीस निर्धारण करने का अधिकार निजी स्कूल का है, उसमें हस्तक्षेप करना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। अधिवक्ता सिसोदिया ने कोर्ट का इस ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि मामले में पहले ही कोर्ट ने 10 अप्रैल को कुछ भी कार्रवाई नहीं करने के मौखिक निर्देश दे रखे हैं, फिर जिला शिक्षा अधिकारी स्टे नहीं होने का उल्लेख करते हुए नोटिस दे रहे है। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए एएजी राजेश पंवार और अधिवक्ता श्याम पालीवाल को निर्देश दिए कि वे शासन सचिव (ग्रुप पांच) को इसकी जानकारी दे कि प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को इस संबंध में निर्देशित करे कि जब तक मामले में निर्णय नहीं आता, तब तक एक्ट के क्रियान्वयन की कोई कार्रवाई नहीं करें। इसके बावजूद कार्रवाई करने पर शासन सचिव के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होगी।
राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश गोपालकृष्ण व्यास और रामचंद्रसिंह झाला की खंडपीठ ने बुधवार को विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई की। खंडपीठ ने शिक्षा सचिव को निर्देश दिए कि जब तक निजी स्कूलों की फीस निर्धारण के लिए बनाए गए एक्ट पर सुनवाई चल रही है, तब तक इस संबंध में एक्ट को क्रियान्वयन नहीं कर प्रदेश के किसी भी निजी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई नहीं करें। राजसमंद के लक्ष्मीपत सिंहानिया स्कूल, मयूर पब्लिक स्कूल, गांधी सेवा सदन स्कूल, ऑरेंज काउंटी स्कूल, श्रीजी पब्लिक स्कूल, क्रिएटिव ब्रेन एकेडमी, सुभाष पब्लिक स्कूल, प्रगति स्कूल एमडी सहित 8 निजी स्कूलों और जोधपुर के सेंटपॉल स्कूल की ओर से पेश याचिका पर यह निर्णय हुआ। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनीष सिसोदिया ने राज्य सरकार की ओर से 2013 में फीस निर्धारण के लिए बनाए एक्ट को खत्म कर वर्ष 2016 में लागू किए गए नए एक्ट के खिलाफ याचिका दायर की। नए एक्ट के अनुसार निजी स्कूलों में फीस निर्धारण के लिए टीचर और अभिभावकों की कमेटी बनाई जानी थी। कमेटी ही फीस का निर्धारण कर राज्य सरकार से अप्रूवल लेगी। सिसोदिया ने तर्क दिया कि फीस निर्धारण से सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। सरकार इन स्कूलों को किसी तरह का अनुदान ही नहीं देती है। केवल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से मान्यता ली जाती है। पीएनए पाय फाउंडेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्धारित किया है कि गैर सरकारी स्कूलों और गैर सरकारी कॉलेजों में सरकार तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जब तक वे मुनाफाखोरी नहीं कर रहे हो।बहुत ज्यादा फीस लेने या मुनाफाखोरी की स्थिति में हस्तक्षेप किया जा सकता है, अन्यथा बिल्कुल नहीं। फीस निर्धारण करने का अधिकार निजी स्कूल का है, उसमें हस्तक्षेप करना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। अधिवक्ता सिसोदिया ने कोर्ट का इस ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि मामले में पहले ही कोर्ट ने 10 अप्रैल को कुछ भी कार्रवाई नहीं करने के मौखिक निर्देश दे रखे हैं, फिर जिला शिक्षा अधिकारी स्टे नहीं होने का उल्लेख करते हुए नोटिस दे रहे है। कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए एएजी राजेश पंवार और अधिवक्ता श्याम पालीवाल को निर्देश दिए कि वे शासन सचिव (ग्रुप पांच) को इसकी जानकारी दे कि प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को इस संबंध में निर्देशित करे कि जब तक मामले में निर्णय नहीं आता, तब तक एक्ट के क्रियान्वयन की कोई कार्रवाई नहीं करें। इसके बावजूद कार्रवाई करने पर शासन सचिव के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होगी।