उदयपुर .
मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में विभिन्न शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है। इस बीच विवि की ओर से गत नौ मई को एक बार फिर नियमावली जारी की गई। इससे साफ जाहिर है कि भर्ती प्रक्रिया अभी तक नियमों के भंवर में है। विश्वविद्यालय के तर्क से यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि प्रक्रिया के बीच में नियमावली जारी करने का कारण क्या है?
सुगबुगाहट है कि विवि के कुछ अधिकारी जिन्हें उपकृत करना चाहते हैं,वे इन नियमों में फंस रहे हैं। ऐसे में जैसे-तैसे गलियां निकालने का प्रयास किया जा रहा है। नियमावली को लेकर अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि जहां कहीं उलझन या भ्रम होता है तो नियमों को स्पष्ट करना जरूरी है। हालांकि इसमें से एक नियम पर अभी तक विवि स्पष्ट नहीं है। ऐसे में विवि ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से मार्गदर्शन मांगा है।
इसमें भी निकाली गली
यूजीसी ने वर्ष 2009 में जारी अपने मूल नियम में 6 जुलाई, 2015 को कोई भी विश्वविद्यालय अपने एम्प्लॉय शिक्षक से यदि पीएचडी या एमफिल करवाता है तो वह एमफिल या पीएचडी किया व्यक्ति मान्य होगा। जबकि यदि कोई विवि बाहर के या अन्य किसी शिक्षक के माध्यम से पीएचडी करवाता है तो वह एमफिल या पीएचडी किया अभ्यर्थी शैक्षणिक पदों के लिए पात्र नहीं होगा। जबकि सुखाडिय़ा विवि ने भर्ती नियमों में गली निकालते हुए हाल में जारी नई नियमावली में स्पष्ट किया कि वर्ष 2015 से पहले के जो भी अभ्यर्थी हैं, उन्होंने कहीं से भी पीएचडी व एमफिल किया है तो वे पद के लिए पात्र होंगे।
इसमें अस्पष्टता, मांगा मार्गदर्शन
यूजीसी के नियमानुसार एसोसिएट प्रोफेसर के लिए आठ वर्ष का असिस्टेंट प्रोफेसर पद या समकक्ष शैक्षणिक नियमित अनुभव जरूरी है। इसमें विवि ने यूजीसी से मार्गदर्शन मांगा है कि आठ वर्ष के अनुभव वाले बिन्दु को स्पष्ट किया जाए। यह अनुभव यदि टुकड़ों में पूरा किया गया हो तो उसे लिया जा सकता है या नहीं? जबकि यूजीसी ने इसे नियमित लिखा है।
मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में विभिन्न शैक्षणिक व गैर शैक्षणिक पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है। इस बीच विवि की ओर से गत नौ मई को एक बार फिर नियमावली जारी की गई। इससे साफ जाहिर है कि भर्ती प्रक्रिया अभी तक नियमों के भंवर में है। विश्वविद्यालय के तर्क से यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि प्रक्रिया के बीच में नियमावली जारी करने का कारण क्या है?
सुगबुगाहट है कि विवि के कुछ अधिकारी जिन्हें उपकृत करना चाहते हैं,वे इन नियमों में फंस रहे हैं। ऐसे में जैसे-तैसे गलियां निकालने का प्रयास किया जा रहा है। नियमावली को लेकर अधिकारी तर्क दे रहे हैं कि जहां कहीं उलझन या भ्रम होता है तो नियमों को स्पष्ट करना जरूरी है। हालांकि इसमें से एक नियम पर अभी तक विवि स्पष्ट नहीं है। ऐसे में विवि ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से मार्गदर्शन मांगा है।
इसमें भी निकाली गली
यूजीसी ने वर्ष 2009 में जारी अपने मूल नियम में 6 जुलाई, 2015 को कोई भी विश्वविद्यालय अपने एम्प्लॉय शिक्षक से यदि पीएचडी या एमफिल करवाता है तो वह एमफिल या पीएचडी किया व्यक्ति मान्य होगा। जबकि यदि कोई विवि बाहर के या अन्य किसी शिक्षक के माध्यम से पीएचडी करवाता है तो वह एमफिल या पीएचडी किया अभ्यर्थी शैक्षणिक पदों के लिए पात्र नहीं होगा। जबकि सुखाडिय़ा विवि ने भर्ती नियमों में गली निकालते हुए हाल में जारी नई नियमावली में स्पष्ट किया कि वर्ष 2015 से पहले के जो भी अभ्यर्थी हैं, उन्होंने कहीं से भी पीएचडी व एमफिल किया है तो वे पद के लिए पात्र होंगे।
इसमें अस्पष्टता, मांगा मार्गदर्शन
यूजीसी के नियमानुसार एसोसिएट प्रोफेसर के लिए आठ वर्ष का असिस्टेंट प्रोफेसर पद या समकक्ष शैक्षणिक नियमित अनुभव जरूरी है। इसमें विवि ने यूजीसी से मार्गदर्शन मांगा है कि आठ वर्ष के अनुभव वाले बिन्दु को स्पष्ट किया जाए। यह अनुभव यदि टुकड़ों में पूरा किया गया हो तो उसे लिया जा सकता है या नहीं? जबकि यूजीसी ने इसे नियमित लिखा है।
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